The Bajrang Baan is a Hindu devotional hymn (stotra) addressed to Hanuman. Hanuman is also known as Bajrang Bali. “Bajrang Bali”, “the strong one (bali), who had limbs (anga) as hard as a vajra (bajra)”, this name is widely used in rural North India.
Shri Hanuman is regarded as the God of power, strength and knowledge. He is known as the ‘param bhakt’ of lord Rama and is the incarnation of Lord Shiva. He was born to Kesari and Anjani on the Chaitra Shukla Purnima (Chaitra Shukla Purnima is the Full Moon Day on the Hindu Calendar Month of Chaitra) that is why, he is known as ‘KESERI NANDAN’ and ‘ANJANEYA’.
Bajarang Baan: आज मंगलवार का दिन है, जो रामभक्त हनुमान जी की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा शनिवार और हनुमान जयंती के दिन विधि विधान से किया जाता है। आज हम बात कर रहे हैं बजरंग बाण के महत्व के बारे में। जब आप विकट संकट में फंसे हों, सभी परिस्थितियों आपके विरुद्ध हों, उनसे निकलने का कोई भी मार्ग नहीं सूझ रहा हो, मनोबल टूट रहा हो, मन में डर और भय हो, तो ऐसे समय में मंगलवार या शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमान जी को याद करें और बजरंग बाण का पाठ करें।
ध्यान रखें कि बजरंग बाण का पाठ हर किसी को, किसी भी समय नहीं करना चाहिए। विपदा की घड़ी में ही बजरंग बाण का पाठ किसी एकांत जगह या हनुमान मंदिर में करें। या फिर जब आपको कोई ऐसा काम करना है, जो आपके जीवन में विशेष है तब ही बजरंग बाण का पाठ करें। साधारण उद्देश्यों आदि के लिए बजरंग बाण के पाठ की मनाही है अन्यथा उसमें होने वाली गलतियों को पवनपुत्र हनुमान जी माफ नहीं करते हैं।
बजरंग बाण का पाठ करते समय आप मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहें। बजरंग बाण का पाठ करते समय शुद्ध उच्चारण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। इस बात का खास ध्यान रखें कि बजरंग बाण का पाठ एक बार में पूर्ण कर लें, बीच बीच में कोई व्यवधान न हों।
जब आप किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए बजरंग बाण का पाठ करें और वह कार्य सफल हो जाए तो इस बात का प्रण लें कि आप हनुमान जी की सेवा के लिए नियमित कुछ न कुछ अवश्य ही करेंगे।
बजरंग बाण जय हनुमन्त संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी
दोहा निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥
जय हनुमन्त संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज बिलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महासुख दीजै ।।
जैसे कूदी सिन्धु महि पारा । सुरसा बदन पैठी विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम-पद लीना ।।
बाग उजारि सिन्धु मह बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जय-जय धुनि सुरपुर में भई
अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।
जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर होई दु:ख करहु निपाता ।।
जै गिरिधर जै जै सुख सागर । सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ओम हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहि मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ।।
ओंकार हुंकार महाप्रभु धाओ । बज्र गदा हनु विलम्ब न लाओ ।।
ओम ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा । ओम हुं हुं हुं हनु अरि उर-सीसा॥
सत्य होहु हरी शपथ पायके । राम दूत धरु मारू जायके
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप-तप नेम अचारा । नहिं जानत हो दास तुम्हारा ।।
वन उपवन मग गिरि गृह मांहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।
पायं परौं कर जोरी मनावौं । येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
जय अंजनी कुमार बलवंता । शंकर सुवन वीर हनुमंता ।।
बदन कराल काल कुलघालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत प्रेत पिसाच निसाचर। अगिन वैताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की । राखउ नाथ मरजाद नाम की ।।
जनकसुता हरि दास कहावो । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जै जै जै धुनि होत अकासा । सुमिरत होत दुसह दुःख नासा ।।
चरण शरण कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
उठु उठु चलु तोहि राम-दोहाई । पायँ परौं, कर जोरि मनाई ।।
ओम चं चं चं चं चपल चलंता । ओम हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।
ओम हं हं हाँक देत कपि चंचल । ओम सं सं सहमि पराने खल-दल ।।
अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होय आनंद हमारौ ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कोन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्रान की ।।
यह बजरंग बाण जो जापैं । ताते भूत-प्रेत सब कापैं ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेसा ।।
दोहा : प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।