Brihaspati Mantra

सूर्य के बाद सबसे विशाल ग्रह भी बृहस्पति ही है। देवपूज्य बृहस्पति या गुरु दार्शनिक, आध्यात्मिक ज्ञान को निर्देशित करने वाला उत्तम ग्रह माना गया है।      देवगुरु बृहस्पति के ‍तंत्रोक्त मंत्र ना सिर्फ धन और वैभव की दृष्टि से चमत्कारी है बल्कि तुरंत असर करने वाले हैं। जरूरत है इन्हें एक साथ निरंतर जपने की।    इन चमत्कारी मंत्रों की जप संख्या 19 हजार है।    आप किसी भी एक गुरु मंत्र का गुरुवार के दिन जप कर सकते हैं।     देवगुरु बृहस्पति के चमत्कारी मंत्र*  ॐ बृं बृहस्पतये नम:।*  ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।*  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।*  ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।*  ॐ गुं गुरवे नम:।

बृहस्पति मन्त्र और उसके लाभ

बृहस्पति देव को देवताओं के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। भगवान शंकर ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें देव गुरु बनाया था। जब-जब देवता संकट में घिरते हैं तो देवगुरु उनकी सहायता करते हैं, उनकी कृपा से वे विभिन्न संकटों से उभर पाते हैं। देवगुरु बृहस्पति की महिमा बखान तमाम धर्म शास्त्रों में विविध रूपों में किया गया है।

बृहस्पति देव धनु व मीन राशि के स्वामी है। इनकी महादशा 16 वर्ष की होती है।

देव गुरु बृहस्पति को पीत रंग बेहद पंसद है, वे स्वयं पीत वर्ण के हैं। उनके सिर पर स्वर्ण मुकुट व गले में सुंदर माला सुशोभित है। वे पीले वस्त्र धारण करते हैं और कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं। उनके हाथों में क्रमश: दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र व वरमुद्रा सुशोभित रहती है। बृहस्पति देव देखने में अत्यन्त सुंदर हैं, इनका आवास स्वर्ण निर्मित है। वे जिस भक्त पर प्रसन्न होते हैं, उसे बुद्धि-बल और धन-धान्य से सम्पन्न कर देते हैं।

उसे सन्मार्ग पर चलाते हैं और विपत्ति आने पर उसकी रक्षा भी करते हैं। शरणागत वत्सलता इनमें कूट-कूट कर भरी है। इनका वाहन रथ है, जो सोने का बना है और अत्यन्त सुख साधनों से युक्त और सूर्य के समान है। इसमें वायु के समान वेग वाले आठ घोड़े जुते हुए हैं। इनका सुवर्ण निर्मित दंड भी है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। देवगुरु की पहली पत्नी का नाम शुभा और दूसरी पत्नी का नाम तारा है। शुभा से सात कन्याएं उत्पन्न हुई हैं, जो भानुमति, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती हैं। उनकी पत्नी तारा के सात पुत्र और एक कन्या है। उनकी तीसरी पत्नी ममता से भारद्वाज और कंचन नाम के दो पुत्र हुए। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं।

बृहस्पति देव महर्षि अंगरा के पुत्र और देवताओं के पुरोहित हैं। वे अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनके हिस्से का यज्ञ भाग प्राप्त करवाते हैं। जब असुर यज्ञ में बाधा डाल कर देवताओं को भूखा मार देना चाहते हैं तो देवगुरु रक्षोन्घ मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं की रक्षा करते हैं। उनके प्रभाव से दैत्य भाग खड़े होते हैं।

वे देवताओं के आचार्य कैसे बने और इन्हें ग्रहत्व कैसे प्राप्त हुआ? इसका विस्तृत वर्णन स्कन्दपुराण में मिलता है। एक समय की बात है कि बृहस्पति देव ने प्रभास तीर्थ में जाकर भगवान शंकर का कठोर तप किया था। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें देवगुरु का पद व ग्रहत्व प्रदान किया था। बृहस्पति देव एक राशि में एक-एक वर्ष रहते हैं। वक्र गति होने पर इनमें अंतर हो जाता है।

बृहस्पति देव की शांति व प्रसन्नता के लिए क्या करें

बृहस्पति देव की प्रसन्नता व शांति के लिए हर अमावस्या और बृहस्पति का व्रत करना चाहिए। पीला पुखराज धारण करने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मणों को दान देने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते है, इनकी प्रसन्नता के लिए ब्राह्मणों को दान में पीला वस्त्र, सोना, हल्दी, घी, पीला अन्न, पुखराज,अश्व, पुस्तक, मधु, लवण, शर्करा, भूमि और छत्र देना चाहिए।

बृहस्पति की शांति के लिए वैदिक मंत्र

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्बिभाति क्रतुमज्जनेषु।

यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं ध्हि चित्रम्।।

बृहस्पति की शांति के लिए पौराणिक मंत्र

देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसंनिभम्।

बुद्धिभूतं त्रिलोकशं तं नमामि बहस्पतिम्।।

बीज मंत्र

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:

सामान्य मंत्र

ॐ बृं ब्रहस्पतय नम:

गुरूवार को बृहस्पति जी की पूजा होती है है जिनको देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। चार हाथों वाले बृहस्‍पति जी स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये रहते हैं, और पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन रहते हैं। इनके चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा शोभा पाती है। प्राचीन ऋग्वेद में बताया गया है कि बृहस्पति बहुत सुंदर हैं। ये सोने से बने महल में निवास करते है। इनका वाहन स्वर्ण निर्मित रथ है, जो सूर्य के समान दीप्तिमान है एवं जिसमें सभी सुख सुविधाएं संपन्न हैं। उस रथ में वायु वेग वाले पीतवर्णी आठ घोड़े तत्पर रहते हैं।

देवगुरू का परिवार

देवगुरु बृहस्पति की तीन पत्नियां हैं जिनमें से ज्येष्ठ पत्नी का नाम शुभा, कनिष्ठ का तारा या तारका तथा तीसरी का नाम ममता है। शुभा से इनके सात कन्याएं उत्पन्न हुईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं, भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। इसके उपरांत तारका से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। उनकी तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं।  

बृहस्‍पति गुरू के पवित्र मंत्र

जब असुर एवं दैत्य यज्ञ में विघ्न डालकर देवताओं को क्षीण कर हराने का प्रयास करते रहते हैं तो उनकी रक्षा देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग करके करते हैं। बृहस्‍पति देवताओं का पोषण एवं रक्षण करते हैं और दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। उनकी पूजा में नीचे दिये 5 मंत्रों का जाप विशिष्‍ट माना गया है।  1- देवानां च ऋषीणां च गुरुं का चनसन्निभम।

2- बुद्धि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पितम।

3- ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।

4- ऊं बृं बृहस्पतये नम:। और

5- ऊं अंशगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव: प्रचोदयात्।

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